बात गरीबी की नहीं
भूख की है
आज उनकी आंखों में
केवल आंसू हैं....
कभी अनवरत बहते
कभी सूख जाते आंसू
केवल वो नहीं
उनके चूल्ह भी रोते हैं
दो रोटियों के मोहताज
ढेरों चूल्हे
इंतज़ार में हैं
कुछ दानों के
जो भूख की तड़प को
मिटा सकें
और पोछ सकें
उनकी आंखों के आंसू
पर....
कौन सहारा बने
किसी की भरी तिजोरियां !
और कहीं कोई खाली पेट
सबको अपनी फ़िक्र
या किसी के चूल्हे की
अपनी सुखद रातों की
सबको है चिंता...
कौन जुटाए
उनके लिए दाने
ताकि बन सके
इंतज़ार करते
चूल्हों पर रोटी.....