गुरुवार, मई 24, 2012
मंगलवार, मई 22, 2012
ना उनका जश्न था, ना मेरा शिकवा...
1.
न उनका जश्न था, ना मेरा शिकवा
ना उनको फिक्र थी, ना मुझे शिकायत
मेरे सीने में जलती आग ने
मेरे ही जख्म कर दिए
2.
अंगारों में जी रहे थे
एक बूंद के सहारे
दरिया था आग का
उम्मीदें थीं किनारे
3.
ख्वाहिशें दबे पांव
घर कर जाती हैं
मेरे आइने में
उम्मीदों की
परछाइयां छोड़ जाती हैं
4.
दफ्न है वो मेरे सीने में
एक याद बनकर
मेरी चाहतों में
मेरी फरियाद बनकर
भूल जाऊं जो कभी
तेरी इनायत को
मेरी सांसें भी रूठ जाएंगी
मेरा दामन छोड़कर
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