गुरुवार, मार्च 19, 2009

उठा लो मशाल

ज़िंदगी के किसी मोड़ पर

न कोई भरम रहे

तमन्नाओं पर जीत के लिए

हौसलें हावी रहें

कि अभी वक्त का तकाजा है

पसीना बहा लो

खूबसूरत कल की

मूरत बना लो

ख्वाबों के संग तुम्हारी जंग में

जीत ज़रूर होगी

वक्त से तुम आगे होगे

पीछे दुनिया होगी

अब देर न करो

जुट जाओ इसी हाल

फौलादी इरादों की

उठा लो मशाल

मुझे पता है....

ज़िंदगी के इस मोड़ पर भी

न ठहर पाउंगा

मुझे पता है

मैं वक्त तो नहीं

पर गुजर जाउंगा

कभी जो मुलाक़ात हो जाए

किसी मोड़ पर

मिल के चंद पल

फिर निकल जाउंगा....

सोमवार, मार्च 02, 2009

तुम ऐसी तो ना थी....

हसरत तुम्हारी ये तो न थी
कि आज तुम क्या हो गई हो
हमसे कुछ अलग
बेपरवाह सी हो गई हो

तमन्नाओं के ढेर थे
मुट्ठियों में क़ैद सपने
न ढेर हैं न तमन्नाएं
तुम कहां खो गई हो

रंगीं फ़िज़ा के नज़ारे
देखते थे जिनकी आंखों से
अब ऐसे नज़ारों से
क्यों ओझल हो गई हो

वफ़ा की मिसाल थी
हर किसी की ज़ुबां पर
अब हर ज़ुबां के लफ़्ज़ से
गायब हो गई हो

मांगते थे मुस्कान
जिनके होठों से
मयस्सर नहीं अब
बस रुला रही हो

हर दर्द की
दवा थी तुम
अब हर दवा पे भारी
दर्द बन गई हो

तबियत परेशां सी
उलझन में जज़्बात
कैसे खेल मुझसे तुम
यूं खेल रही हो

..............to be continued