गुरुवार, मार्च 19, 2009

उठा लो मशाल

ज़िंदगी के किसी मोड़ पर

न कोई भरम रहे

तमन्नाओं पर जीत के लिए

हौसलें हावी रहें

कि अभी वक्त का तकाजा है

पसीना बहा लो

खूबसूरत कल की

मूरत बना लो

ख्वाबों के संग तुम्हारी जंग में

जीत ज़रूर होगी

वक्त से तुम आगे होगे

पीछे दुनिया होगी

अब देर न करो

जुट जाओ इसी हाल

फौलादी इरादों की

उठा लो मशाल

2 टिप्‍पणियां:

अखिलेश शुक्ल ने कहा…

माननीय महोदय
सादर अभिवादन
आपके ब्लाग की प्रस्तुति ने अत्यधिक प्रभावित किया। पत्रिकाओं की समीक्षा पढ़ने के लिए मेरे ब्लाग पर अवश्य पधारें।
अखिलेश शुक्ल
संपादक कथाचक्र
please visit us--
http://katha-chakra.blogspot.com

Barun Sakhajee Shrivastav ने कहा…

आपके लिए कुछ लिखने से पहले कुछ सोचना पड़ता है..आज भी वही उहा-पोह है कि लिखा जाए तो क्या यूं ही कमेंट्स कर देना क्या कमेंट्स होता है ये शादी में दिया जाने वाला व्यवहार नहीं जो मैंने किया कमेंट्स तो आप भी करें खुदबखुद निकलने वाली एक संवेदना है आज आपकी इस प्रस्तुति के लिए मैं इतना ही कहूंगा कि मंजिल के लिए मील का प्तथर ना देखिए..मजबूत इरादे हैं तो थक कर ना बैठिए..हर रात के मसीब में होती है एक सहर मजबूरियों की राह में ईमान ना बेंचिए.....मिशाल भर थामने से क्या होगा देश जुनिया को आग की नहीं बल्कि आपके दिल में मशाल सी ज्वाला की ज़रूरत है...........जो बदल सके इस निज़ाम ओ हुक़ुमत को.....धन्यवाद