सोमवार, मार्च 02, 2009

तुम ऐसी तो ना थी....

हसरत तुम्हारी ये तो न थी
कि आज तुम क्या हो गई हो
हमसे कुछ अलग
बेपरवाह सी हो गई हो

तमन्नाओं के ढेर थे
मुट्ठियों में क़ैद सपने
न ढेर हैं न तमन्नाएं
तुम कहां खो गई हो

रंगीं फ़िज़ा के नज़ारे
देखते थे जिनकी आंखों से
अब ऐसे नज़ारों से
क्यों ओझल हो गई हो

वफ़ा की मिसाल थी
हर किसी की ज़ुबां पर
अब हर ज़ुबां के लफ़्ज़ से
गायब हो गई हो

मांगते थे मुस्कान
जिनके होठों से
मयस्सर नहीं अब
बस रुला रही हो

हर दर्द की
दवा थी तुम
अब हर दवा पे भारी
दर्द बन गई हो

तबियत परेशां सी
उलझन में जज़्बात
कैसे खेल मुझसे तुम
यूं खेल रही हो

..............to be continued

1 टिप्पणी:

Barun Sakhajee Shrivastav ने कहा…

शायर बशीर बद्र के शेरों की खुशबू.............ग़ालिब की फाका ज़िंदग़ी सी महसूसियत आपके शेरों में होती है....लगता है.....कोई अगली सदी का......शायर कहीं नौकरी नाकरी में कुचला जा रहा है......sakhajee@yahoo.co.in
sakhajee.blogspot.com