रविवार, सितंबर 21, 2008

मोड़ का वो पेड़....

मोड़ के उस पेड़ ने एक दौर देखा है
कभी रुसवाइयों को कभी जश्ने बहार देखा है
ढलते सूरज को कौन सलाम करे...
हर शाम का ढलता मंजर देखा है

गोरी की आंखों में प्रेमी का प्यार
कभी तकरार तो कभी मनुहार देखा है
कि रिश्तों का खेल ये कैसा...
किसी को बिछड़ते तो किसी का निकाह देखा है

पुजारी का वंदन और घंटों का स्पंदन
मस्जिद में नमाज हर रोज देखा है
बचपन की किलकारी वो कैसे भूल जाये...
किसी को हंसता और किसी को रोता देखा है

नारी के रूप में दुर्गा की शक्ति
कभी अदब तो कभी चीरहरण देखा है
कि दुशासन कभी नहीं मरते...
फिर से मर्यादा को शर्मसार देखा है

चबूतरें पर बैठक और धर्म का उन्माद
क़ौमों को मिलते और बिछुड़ते देखा है
कि ठूंठ आंखें बंद कैसे करे...
कभी अलगाव तो कभी मेला देखा है

छल कपट और मौक़ापरस्ती
कभी प्यार तो कभी प्रहार देखा है
कि काश कभी होश खो देता...
पर चश्मदीद की मानिंद हर गुनाह देखा है

तपती दोपहरी में कभी कोहरे की धुंध में
पतझड़ की उदासी और बसंत की बहार को
कि उम्र गुजर गई उसी मोड़ पर...
खुद में ठहरा हुआ इतिहास देखा है

प्रवीन....

5 टिप्‍पणियां:

परमजीत सिहँ बाली ने कहा…

बधिया रचना है।
तपती दोपहरी में कभी कोहरे की धुंध में
पतझड़ की उदासी और बसंत की बहार को
कि उम्र गुजर गई उसी मोड़ पर...
खुद में ठहरा हुआ इतिहास देखा है

vikas_am ने कहा…

nice man!
this one is far better then the first one. but your language is still a mix of 'urdu' and 'hindi' (may be its new style). i am writing this because i know your potential.

remember! when you and mintu used to fire your naive poems on me n taau.
Now you are at the place where everyone (including us) wants your poems and texts.
keep it up dear.

waiting for more.......

Meet Chaudhary ने कहा…

kya bat hai tum to tuta dil hai kya...
ignu ke sare poiem likh de...........

प्रवीण त्रिवेदी ने कहा…

bahut badhiya!!!!!!!


प्रवीण त्रिवेदी "प्राइमरी का मास्टर" / PRAVEEN TRIVEDI
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Barun Sakhajee Shrivastav ने कहा…

वाह को अलावा क्या कहा जाए समझ नहीं आता आपकी इस नई प्रतिभा से रूबरू होकर अच्छा लगा दरअसल आप अच्छा नहीं लिखते बल्कि बहुत ख़ूब लिखते हैं..कुछ और सुनाइये.....फुर्सत में फित कभी दोबारा पढ़ूंगा तो फिर कमेंट्स करूंगा वाज़ नहीं आऊंगा.....सर जी बो हद लाजबाव