बुधवार, अगस्त 05, 2009

फिर आ गई है राखी...

मेरी यादों में तस्वीर की तरह बसी है हर राखी
बचपन की यादों में बहन से तकरार की राखी
मां के आंचल में छिपकर फिर प्यार की राखी
पापा ने समझाया तो थोड़ी समझदार हुई राखी
हम जितना समझे, समझदार हुई राखी
जिम्मेदारियां समझे तो जिम्मेदार हुई राखी
बहन को फिर वचन दिया वचनदार हुई राखी
वही घर, वही गलियां, फिर सब बुला रहे हैं
जाओ अपने घर, फिर गई है राखी...

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

kahan se itni mast poetry likhte ho bhai???