कुछ तेरी...कुछ मेरी
रविवार, दिसंबर 06, 2009
तूफां यहां...
तूफां
यहां
किस
कदर
ढूंढते
हैं
हमारा
घर
किधर
सोचते
हैं
इन
लहरों
को
अब
पार
कर
जाएं
मंज़िलों
का
ना
कोई
रास्ता
इधर
..........
1 टिप्पणी:
शरदिंदु शेखर
ने कहा…
लाजवाब
जून 14, 2010 9:06 am
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