बुधवार, अगस्त 04, 2010
आप न्यूज चैनल में काम करते हैं...झमाझम हैं कि नहीं...???
सही या गलत पर अदभुत, ये विचार नहीं एक खामोश सच है कि बस चिल्लाओ और छा जाओ, भले ही कुछ ना कर रहे हो लेकिन कुछ करते दिखो, ये तरीका है अपने को प्रोजेक्ट करने का....नौकरी का सदा सत्य..बॉस इज़ ऑलवेजराइट! और ऑलवेज राइट बॉस को भी झमाझम लोग ज्यादा पसंद होते हैं...(विदेश में किए गए सर्वे के मुताबिक)....कौन कितना चिल्लाता है....खबर...खबर...खबर...कहते हुए दे मारी ब्रेकिंग, खबर पुरानी भी हो तो क्या...न्यूज में ब्रेकिंग अब बदल चुकी है...जो ब्रेकिंग कर दो वही ताजा हो जाती है....दिखाया हुआ वापस तो ला नहीं सकते....उममम....कोई बात नहीं चलो अगली बारी कुछ बेहतर करेंगे....कुछ ताजा चलाएंगे...वैसे भी न्यूज़ में ऑलवेज़ ब्रेकिंग के जमाने में कौन देखता है कि पेपर में छपी थी....या दो दिन पुरानी है....या फिर नेट में पढ़ी....इंस्टैंट वर्क चाहिए...चाहे दमदार हो....या फुस्स पटाखा....गहरी समझ की जरूरत ही नहीं है आगे जाने के लिए...मतलब आगे जाना है तो फुर्ती जरूरी है...वो भी काम की नहीं..हाव-भाव की..आए या कुछ ना आए...कहने का तात्पर्य है अल्पज्ञानी भी इस नौकरी में आगे बढ़ सकते हैं...'नीम हकीम खतरे जान' जैसा कुछ भी नहीं है यहां..आखिर खबर चलाने से किसी की जान जाती है क्या भला...वैसे भी टीवी में कौन कितना अंदर घुसकर खबर दिखाता है...खबर की कितनी चीरफाड़ करता है...करता भी है तो बेमतलब की खबरों की...चार अक्षर लिखो...दे मारो स्क्रीन पर...फिर फोनो..जरूरी हुआ तो फाइल शॉट लगा लिए...नहीं तो आगे बढ़े...फिर वैसी ही एक और ब्रेकिंग दे मारी...एक-आधी खबरें चलाईं....बुलेटिन खतम...दिन भर पार हो गया...हिसाब-किताब दिया...घर चले...फिर अगले दिन वही..हिट होना है तो कुछ सीखो या ना सीखो...झमाझम बनो...ये काम फुर्ती दिखाने का है...खासकर जब बॉस इर्द-गिर्द हों...वक्त का तकाजा है...टीआरपी के चक्कर में हाल ही ऐसा हो गया है...अक्लमंद कितने भी हो...इस झमाझम काम में जो पीछे रह गया...उसका तो भगवान ही मालिक है...कोई तो समझो भाई...ये तो खबरिया चैनल है...यहां तो ऐसे ही चलता है...बड़े-बड़े पत्रकार कहते हैं...हिट होना है तो समझ का पहाड़ा कितना आता है मतलब नहीं...झमाझम कितने हो मतलब इससे है...झमाझम नहीं है कोई तो सीख लो...नहीं तो आपकी बनाई ब्रेकिंग में हिट होने की सुगंध नहीं आएगी...और ब्रेकिंग में अगर ये सुगंध नहीं आई तो...क्या फिर क्या किया दिनभर...घर जाके सोचो...सोचना जरूर...सोचा कि नहीं.....???????? सोचना तो पड़ेगा.....आखिर नहीं सोचेगे तो आगे कैसे बढ़ोगे....झमाझम नहीं बनना है क्या......?
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4 टिप्पणियां:
चिंता न करो, पत्रकारिता में ही नहीं बल्कि सभी जगह यही काठ के उल्लू बैठे हैं
nice
क्या खूब लिखा है...जरूरी है कि ये आर्टिकल बॉस लोग भी पढ़ें, ताकि अकेले में ही सही उनको अपनी करनी पर पछताबा तो हो।
बहुत खूब प्रवीण जी...अच्छा लिखा है....लगा कि सच्चाई को आपने शब्दों में पिरो दिया है...पर दिक्कत यही है कि ये हालात जानते तो सब हैं...पर ना जाने क्यूं आंखे बंद किए बैठे रहते हैं...
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