शुक्रवार, अगस्त 06, 2010

एक शहर ऐसा भी.....

हादसों के शहर में अब नहीं होते हादसे
इतने हो चुके कि अब बियाबां हो गया

मुकद्दर यहां क्या बिगड़ेगा अब लोगों का
शहर ठूठ सा है, सब खतम हो गया

नसीबों को रोते थे, अब बदनसीब भी नहीं हैं
इस शहर में अब कुछ नहीं रह गया

रास्ते कभी मंज़िलों को जाते थे जो
ना रास्ते रहे, ना मंज़िलो से वास्ता

दुआओं की खातिर मंदिर थे मस्जिद थी
अब दुआ नहीं मांगता कोई, खुदा परेशां हो गया

1 टिप्पणी:

बेनामी ने कहा…

सही सोच और सार्थक प्रयास